MVVVPP maharishi mahesh yogi

|| दूषित ग्रह होने पर क्या दान करना चाहिये ? ||

दूषित ग्रह होने पर क्या दान करना चाहिये, इसे ज्योतिर्निबन्ध के आधार पर पृथक 2 ग्रहों की दान वस्तु

सूर्य की दान वस्तु

कौसुम्भवस्त्रं गुडहेमताम्रं माणिक्यगोधूमहिरण्यपपद्मम् ।
सवत्सगोदानमिति प्रणीतं दुष्टाय सूर्याय मसूरिकाश्च ।।

ज्योतिर्निबन्ध में कहा है कि सूर्य अशुभ हो तो कौसुम्भ वस्त्र, गुड़, सुवर्ण, तांबा, माणिक्य, गेहूँ, मसूर, सोने का कमल और सवत्सा (बछड़े के साथ) गाय का दान करने पर सूर्य का अशुभत्व नष्ट होता है।

चन्द्रमा की दान वस्तु

घृतकलशं सितवस्त्रं दधिशंखमौक्तिकं सुव्रर्णं च ।
रजतं च शङ्खं दद्याच्चन्द्रारिष्टोपशान्तये ।।

जब चन्द्रमा दूषित हो तो घी का घड़ा, सफेद वस्त्र, दही, शंख, मोती, सोना, चांदी दान चन्द्र अरिष्ट शान्ति के लिए करना चाहिये।

मंगल के दान पदार्थ

प्रवालगोधूममसूरिकाश्च वृषश्च ताम्रः करवीरपुष्पम् ।
आरक्तवस्त्रं गुडहेमताम्रं दुष्टाय भौमाय सचन्दनं वा ।।

भौम के दूषित होने पर मूंगा, गेहूँ, मसूर, बैल, लाल कनेर के फूल, लाल कपड़ा गुड़, सुवर्ण वा चन्दन के साथ ताम्र का दान करने से भौम का दोष दूर होता है।

बुध के दान पदार्थ

नीलं वस्त्रं मुद्गदानं बुधाय रत्नं दद्याद्दासिका हेम सर्पिः ।
काँस्यं दन्तः कुंजरस्याथ मेषो रौप्यं सर्वं पुष्पजात्यादिकं च ।।

बुध के दोषी होने पर नीला वस्त्र, मूँग रत्न, दासी, सोना, घी, कांसा, हाथी का दाँत, बकरा, चाँदी और समस्त पुष्पों का दान करने से दोष समाप्त होता है।

गुरू के दान पदार्थ

अश्वः सुवर्णं शुभपीतवस्त्रं सपीतधान्यं लवणं च पुष्पम् ।
सशर्करं तद्रजनीप्रयुक्तं दुष्टाय शान्त्यै गुरवे प्रणोतम् ।।

गुरू के अशुभ होने पर घोड़ा, सोना, शुभ पीला कपड़ा, पीले धान्य, नमक, पीत पुष्प और चीनी का रात्रि में दान करने से अशुभता का नाश होता है।

शुक्र के दान पदार्थ

चित्रवस्त्रमिह दानवार्चिते दुष्टगे मुनिवरैः परिणीतम् ।
तन्दुलं घृतसुवर्णरूपकं वज्रके परिमलो धवलोऽश्वः ।।

शुक्र के दूषित होने पर विचित्र कपड़ा, चावल, घी, सोना, चाँदी, हीरा, कुंकुम और सफेद घोड़ा के दान से अशुभता दूर होती है।

शनि के दान पदार्थ

नीलकं महिषी वस्त्रं कृष्णं लोहं सदक्षिणम् ।
तैलमाषकुलित्थाश्च शनिरिष्टप्रशान्तये ।।

शनि के अशोभन होने पर नीला वस्त्र, भैंस,दक्षिणा के साथ काला लोहा, तेल, तिल, उड़द, और कुलथी का दान करने से शनि के अशोभनता दूर होती है।

राहु के दान पदार्थ

राहोर्दानं बुधैर्मेषो गोमेदं शस्त्रकम्बलम् ।
सौवर्णे नागरूपं च सतिलं ताम्रभाजनम् ।।

राहू के दूषित होने पर बकरा, गोमेद, शास्त्र, कम्बल, सोने का सर्प और तांबे के बर्तन में तिल भरकर देने से दोष नष्ट होता है।

केतु के दान पदार्थ

केतोर्वैदूर्यममलं तैलं मृगमदस्तथा ।
ऊर्णा तिलाश्च धान्येकं महाजःक्लेशशान्तये ।।

केतु के अशुभ होने पर लहसुनिया, तिल, तेल, हिरन का मद, ऊन, एक धान्य और बड़ा बकरा दान करने से अशुभता नष्ट होती है।

अमृत कुम्भोक्त चन्द्रदान वस्तु

शङ्खो रौप्यमयः शशी च कलशो दुग्धप्रपूर्णस्तथा,
स्थाली काँस्यमयी च मौक्तिकफलं श्रीखण्डकं तन्दुलाः ।
कर्पूरं च सिताम्बरं च कुमुदं व्राज्यादिका स्फाटिकं,
त्वेला चेक्षुरिदं सदा निगदितं दानं शशिप्रीतये ।।

अमृतकुम्भ ग्रन्थ में कहा है कि चन्द्रमा के अशुभ होने पर चाँदी का शंख, दूध से भरा कलशा, काँसे की थारी, मोती, मिश्री के समान सफेद अच्छे चावल, कपूर, सफेद वस्त्र, वज्रादि स्फटिक, बड़ी लाइची, चीनी का दान करने से अशुभत्व विलीन होता है।

अमृत कुम्भोक्त भौम की दान वस्तु

रक्तोऽनड्वान् विद्रुमं रक्तवस्त्रं रक्तं धान्यं ताम्रापात्रं गुडश्च ।
लाक्षारक्तं चन्दनं चाज्यकुम्भं पूगान्येतद्दानमुक्तं कुजस्य ।।

अमृतकुम्भ ग्रन्थ में कहा है कि मंगल के अनष्टि होने पर लाल बैल, मूँगा, लाल कपड़ा, लाल धान्य, (मसूर की दाल), तांबे का पात्र, गुड़, लाख, लाल चन्दन, घी का कलशा और सुपारी का दान करने पर अनिष्ट भाग जाता है।

अमृत कुम्भोक्त बुध की दान वस्तु

शोणं वस्त्रं नीलवस्त्रं च धान्यं नीलं रक्तं हेमगोरोचनं च ।
नांरगीनि स्वस्वकाले फलानि चैतद्दानं प्रीतये स्याद्बुधस्य ।।

अमृतकुम्भ में कहा कि बुध के अशुभकारी होने पर लाल वस्त्र, नीला वस्त्र, नीला धान्य, लाल सोना, चन्दन, नारंगी आदि स्वसमय में उपलब्ध फल का दान करने से अशुभता नष्ट होती है।

अमृतकुम्भोक्त गुरु की दान वस्तु

पोतं दुकूलमथ कम्बलकं च पीतं धान्यं हिरण्यहरितालहरिद्रकाश्च ।
जम्बीरकं त्वपि च पीतफलानि वंशपात्रं त्विदं ननु बृहस्पतिदानमुक्तम् ।।

अमृतकुम्भग्रन्थ में कहा है कि गुरू के अशुभ होने पर पीला वस्त्र, पीला कम्बल, पीला धान्य, सोना, हरताल, हल्दी, नीबू का दान करने से अशुभता दूर हो जाती है।

अमृतकुम्भोक्त शुक्र की दान वस्तु

अश्वः श्वेतः श्वेतधान्यं च वस्त्रं श्वेतं रूप्यं बीजपूरं फलं च ।
कर्पूरं च श्वेतगन्धं च पुष्पं शुक्रस्योक्तं प्रीतये दानमेतत् ।।

अमृतकुम्भ ग्रन्थ में बताया है कि शुक्र के शुभ न होने पर सफेद घोड़ा, सफेद वस्त्र, चावल, चाँदी, बिजौरा, कपूर, सफेद गन्ध, सफेद फल का दान करने से शुभ हो जाता है।

अमृतकुम्भोक्त शनि की दान वस्तु

कृष्णां धेनुं वृषभमपि तिलान्जनं तैलकुम्भं
कृष्णं रत्नं त्रपु च महिषी कृष्णधान्याम्बराणि ।
तीव्रं द्रव्यं समरिचलवंगादिकं गुग्गुलंच
दद्याल्लोहं फलमपि शनिप्रीतये चोक्तमेतत् ।।

अमृतकुम्भ ग्रन्थ में बताया है कि शनि के अशुभ होने पर काली गाय, काला बैल, काले तिल, तेल का कलशा, काला रत्न, रांगा, भैस, तीखे पदार्थ, मिर्च, लोंग आदि से युक्त, गुगुल, लोहा का दान करने पर अशुभता नष्ट हो जाती है।

अमृतकुम्भोक्त राहु की दान वस्तु

शूपं खड्गसुवर्णनागसहितं धान्यैः फलैः सप्तभिः
कूष्माण्डं तिलतन्दुलाश्च लवणं कस्तूरिकां सर्षपान् ।
नालीकेरमुपानहौ शुभमणिं गोमेदकं शय्यकां
दद्याच्छीशककृष्णधान्यवसनं राहुग्रहप्रीतये ।।

अमृतकुम्भ ग्रन्थ में बताया है कि राहु के अशुभ होने पर सूप, खड्ग, सोने का सर्प, सात अन्न व फल, पेठा, तिल, चावल, नमक, कस्तूरी, सरसों, नारियल, जूता, गोमेद, शय्या, शीशा, काले धान्य व कपड़ा का दान करने से राहु का दोष नष्ट होता है।

अमृतकुम्भोक्त केतु की दान वस्तु

मेषश्च चित्रवसनं त्वथ माषदाली वैदूर्यंरत्नमपि कर्बुरकम्बलश्च ।
कार्पासदाडिमफलानि सुगन्धतैलमैरण्डकाश्च कथितं त्विति केतुदानम् ।।

अमृत कुम्भ ग्रन्थ में बताया है कि केतु के अनिष्ट होने पर बकरा, 2-3 रंगों से रंजित वस्त्र, उड़द की दाल, लहसुनिया रत्न, चितकबरा बकरा, कम्बल, रुई, नारंगी फल, सुगन्धित तेल व अण्डी का तेल दान करने से अशुभता नहीं होती है।

अथ दानंकालः

अब आगे किस समय अनिष्ट ग्रह का दान करना चाहिये इसे बृहस्पति जी के वचन से बताते हैं।

दान समय का ज्ञान

यमभे कुजवारस्थे चतुर्दश्यष्टमीयुते ।
कृष्णे पापोदये कुर्याद्दुष्टगृहविवर्जनम् ।।
सूर्यादिकानां यद्दानं जपहोमार्चनादिकम् ।
तेषां वारे प्रकुर्वीत सन्तुष्टास्ते भवन्ति हि ।।

ऋषि बृहस्पति ने बताया है कि भरणी नक्षत्र, मंगलवार, चैदस या अष्टमी तिथि कृष्ण पक्ष, पाप ग्रह को लग्न में, दूषित ग्रह का विसर्जन करना चाहिये। सूर्यादि ग्रहों का जो कि दान, जप, विशेष होम पूजनादि कार्य है उसे उन्हीं के बारे में करना चाहिये। अर्थात् सूर्य अनिष्ट हो तो रविवार, चन्द्र हो तो सोमवार, भौम अनिष्ट हो तो मंगलवार में इत्यादि, दानादि करने से वे प्रसन्न होते हें।

अथ मुद्रिका

अब आगे गोचरीय अनिष्ट ग्रह शान्ति के लिये मुद्रिका (अँगूठी) प्रत्येक ग्रह के लिये किस-किस रत्न की धारण करना चाहिये इसे बताते हैं।

अनिष्ट ग्रहों की अँगूठी

माणिक्यं तरणेः सुजात्यममलं मुक्ताफलं षीतगोर्माहेयस्य च विद्रुमं मरकत सौम्यस्य गारुत्मतम् ।
देवेज्यस्य च पुष्पराजमसुराचार्यंस्य वज्रं शनेर्नीलं निर्मलमन्ययोश्च गदिते गोमेदवैदूर्यके ।।

आचार्य श्रीपति ने बताया है कि सूर्य अशुभ हो तो मानिक की, चन्द्रमा हो तो सुन्दर जाति के निर्मल मोती की, मंगल हो तो मूँगा की, बुध हो तो मरकत मणि या पन्ना की, गुरु हो तो पुखराज की, शुक्र हो तो हीरा की, शनि हो तो निर्मल, नीलम की, राहु हो तेा गोमेद की और केतु अशुभ हो तो लहसुनिया की अँगूठी धारण करने से अनिष्ट दूर होता है।

स्मृति के आधर पर अँगूठी

तारताम्रसुवर्णानामर्कषोडशखेन्दुभिः ।
त्रिभिस्तु वेष्टिता मुद्रा तीव्रदारिद्य्रनाशिनी।।

स्मृति में कहा है कि 12 भाग चाँदी, सोलह 16 तांबा और 10 भाग सोने से (वेष्टित) निर्मित अंगूठी धरण करने से जल्दी दरिद्रता का नाश होता है ।।

अथ त्रिशक्तिमुद्रिका

प्रकारान्तर से मुद्रिका धारण

धार्यं तुष्टयै विद्रुमं भौमभान्वो रौप्यं शुक्रेन्दोश्च हेमेन्दुजस्य ।
मुक्ता सूरर्लोहमर्कात्मजस्य लाजावर्तः कीर्तितः शेषयोश्च ।।

आचार्य श्रीपति ने बताया है कि यदि उक्त रत्न धारण करने में समर्थता न हो तो भौम सूर्य के अनिष्ट होने पर मूँगा, शुक्र हो तो चाँदी, बुध हो तो सोना गुरु हो तो मोती, शनि हो तो लोहा और राहु केतु अनिष्ट कारक हों तो लाजावर्त धारण करना चाहिए।

ग्रहों की दक्षिणा

धेनुः शंखोऽरुणरुचिवृषः कांचनं पीतवस्त्रं
श्वेतश्चाश्वः सुरभिरसिता कृष्णलोहं महाजः ।
सूर्यादीनां मुनिभिरुदिता दक्षिणास्तु ग्रहाणां
स्नानैर्दानैर्हवनबलिभिस्तत्रा तुष्यन्ति यस्मात् ।।

सूर्य की गाय, चन्द्रमा की शंख, मंगल की लाल बैल, बुध की सुवर्णं, गुरु की पीला वस्त्र, शुक्र की सफेद घोडद्या, शनि की काली गाय, राहु की काला लोहा और केतु की दक्षिणा बड़ा बकरा होता है ऐसा मुनियों ने बताया है। ग्रहों के अनिष्ट होने पर औषधि स्नान, दान, हवन, बलिदान से सब ग्रह प्रसन्न होते हैं।

ग्रह स्थापन

मध्ये तु भास्करं विद्याच्छशिनं पूर्वंदक्षिणे ।
दक्षिणे लोहितं विद्याद्बुधमीशानकोणके ।।
गुरुमुत्तरतः स्थाप्यं पूर्वंस्यां दिशि भार्गवः ।
पश्चिमे तु शनिः स्थाप्यो राहुर्दक्षिणपश्चिमें ।।
पश्चिमोत्तरतः केतुग्र्रहाणां स्थापनं स्मृतम् ।।

स्मृति रत्नावली में कहा है कि बीच में सूर्य, पूर्व दक्षिण कोण में चन्द्रमा, दक्षिण में मंगल, ईशानकोण में बुध, उत्तर में गुरु, पूर्व में शुक्र, पश्चिम में शनि, दक्षिण पश्चिम में राहु और उत्तर पश्चिम कोण में केतु की स्थापना करना चाहिए।